प्रेरणा स्रोत - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष )
कोरोना का खौफ
जाने कैसा दौर ये आया
मानव से मानव घबराया
डर ने सबके दिल में घर बनाया
जाने कैसा दौर ये आया
शहर दुकानें बंद पड़ी हैं
गलिया सभी सुनसान पड़ी हैं
घर - घर में है मातम छाया
जाने कैसा दौर ये आया
रिश्तों की डोर है टूटी
अपनों की अपनों से दूरी
अपनों ने दामन है छुड़ाया
जाने कैसा दौर ये आया
कहाँ गए वो त्यौहार और वो मेले
अपने घर में हुए सब अकेले
कैसी ये अकाल की छाया
जाने कैसा दौर ये आया
चलो थोड़े दिनों की और है बात
होगी फिर खुशियों की बरसात
ये मुस्किल समय भी टल जाएगा
फिर ये दौर नहीं आयेगा
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