Monday 11 October 2021

कहानी - इंसानियत - कहानीकार - दिव्या - कक्षा - सातवीं - अ ( केंद्रीय विद्यालय सुबाथू )

 कहानी - इंसानियत -  कहानीकार - दिव्या - कक्षा -  सातवीं  - अ ( केंद्रीय विद्यालय सुबाथू )

प्रेरणा  - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष )


कहानी - इंसानियत 


एक समय की बात है | एक शहर में एक चाय वाला रहता था | वह रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करता था | उसका नाम भोला था | उसी रेलवे स्टेशन पर एक  पुलिस वाला था जिसका नाम सुभाष था | 

        एक दिन वह भोला की दूकान पर चाय पीने गया और बोला ये चाय कितने की दी ? 

भोला बोला - " जी साहब केवल दस रुपये की "

सुभाष ने कहा  - " एक कप दे दो "

चाय पीने के बाद सुभाष के मन में भोला से पैसे वसूलने का विचार आया |

उसने भोला से कहा - " ये कैसी चाय बनायी है न तो इसमें दूध है और न ही चीनी " |

भोला बोला - " साहब मैंने तो इसमें सब कुछ डाला है देखो अदरक भी " |

सुभाष बोला - अगर तुमने मुझे १००० रुपये नहीं दिए तो तुम्हें मैं मिलावट के जुर्म में अन्दर कर दूंगा |

भोला बोला  - नहीं साब आप झूठ बोल रहे हो | मैंने तो चाय में चीनी और दूध के साथ  - साथ अदरक भी डाला है |

डर  के मारे भोला ने सुभाष को पैसे दे दिए |

जाते  - जाते सुभाष धमकी देकर गया कि आगे से मिलावट नहीं करना |

सुभाष वहां से हंसता हुआ चला गया |


इस तरह से सुभाष को लोगों को ठगने की आदत पड़ गयी |


एक दिन स्टेशन के पास ही एक ट्रक वाले से सुभाष ने दारू पीकर गाड़ी चलने की धमकी देकर पैसे ठग लिए |

गाड़ी वाले ने सभी कागजात दिखा दिए तो भी दारु का बहाना लेकर सुभाष ने उससे १००० रुपये ठग लिए |

पहले तो सुभाष ने तेज गाड़ी चलाने का बहाना बनाया फिर दारु पीकर गाड़ी चलाने का |

तभी अचानक -

सुभाष को अचानक गाड़ी का ड्राईवर यह कहते हुए छः महीने के लिए सस्पेंड कर देता है कि सुभाष तुहारे खिलाफ मेरे पास बहुत सी कंप्लेंट आई है कि तुम लोगों से बहाने बनाकर पैसे ठगते हो | मैं इस जगह का नया एस. पी.  हूँ राजेश |

                   सुभाष साहब के पैर पकड़कर माफी मांगे लगता है पर नए एस. पी.  साहब उसकी एक नहीं सुनते | सुभाष उदास मन से अपने घर की ओर बाइक  पर चल देता है रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो जाता है | जब उसकी आँखें खुलती हैं तो वह अपने आपको एक अस्पताल के बिस्तर पर पाता है |

सुभाष डॉक्टर का शुक्रिया अदा करता है | डॉक्टर कहता है शुक्रिया तुम्हें मेरा नहीं |  इस आदमी का कहना चाहिए जिसमे तुम्हें ठीक समय पर अस्पताल पहुंचाया | वर्ना अभी तुम शमशान में होते |

            सुभाष उस आदमी को देखता है तो पाता है कि वह तो भोला है | सुभाष भोला से अपने किये के लिए माफ़ी मांगता है और पैसे वापस करने की बात कहता है |

  भोला कहता है कि साब इंसान ही इंसान के काम आता है | मैंने तो एक इन्सान होने का फ़र्ज़ निभाया | सुभाष की आँखें शर्म से झुक जाती हैं | उसे अपने किये पर बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है |


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